भारत में हरित क्रांति के जनक माने जाने वाले प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन नहीं रहे। 98 साल की उम्र में उन्होंने तमिलनाडु में आखिरी सांस ली। उनका पूरा नाम मनकोम्बु संबासिवन स्वामीनाथन था और उनका जन्म साल 1925 में तमिलनाडु राज्य के तंजावुर जिले में हुआ था।
अधिक उत्पादन का समाधान दिया
स्वामीनाथन को एक कृषि विज्ञानी, कृषि वैज्ञानिक, प्रशासक और मानवतावादी माना जाता है। उन्होंने धान की उच्च उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिली कि भारत के कम आय वाले किसान अधिक उत्पादन करें। उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और बाद में अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक व 1979 में कृषि मंत्रालय के प्रमुख सचिव के रूप में भी कार्य किया।
अकाल से दिलाई निजात
साल 1949 में स्वामीनाथन ने आलू, गेहूं, चावल और जूट के आनुवंशिकी पर शोध करके अपना करियर शुरू किया था। भारत इस वक्त बड़े पैमाने पर अकाल के कगार पर था। देश में खाद्यान्न की कमी हो गई थी। स्वामीनाथन ने नॉर्मन बोरलॉग और अन्य वैज्ञानिकों के साथ मिलकर गेहूं की उच्च उपज वाली किस्म के बीज विकसित किए। उन्होंने हरित क्रांति’ की सफलता के लिए 1960 और 70 के दशक के दौरान सी सुब्रमण्यम और जगजीवन राम सहित कृषि मंत्रियों के साथ काम किया ताकि गेहूं और चावल की उत्पादकता में तेजी से वृद्धि लाई जा सके।
मिल चुके थे ये पुरस्कार
भारत में उच्च उपज देने वाली गेहूं और चावल की किस्मों को विकसित करने और उनका नेतृत्व करने के लिए स्वामीनाथन को 1987 में पहले विश्व खाद्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें 1971 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार और 1986 में अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। उन्हें पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया था। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा स्वामीनाथन को आर्थिक पारिस्थितिकी के जनक के रूप में जाना जाता है।