बिहार चाय बागान की गुणवत्ता के मामले में देश में पांचवें स्थान पर, राज्य में चाय उद्योग की संभावना उज्‍जवल

राज्य में चाय उद्योग की संभावना बहुत उज्‍जवल है। राज्य में उद्योग को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि बिहार वर्तमान में चाय बागान की गुणवत्ता के मामले में देश में पांचवें स्थान पर है।

बिहार के सीमावर्ती जिला किशनगंज नेपाल, बंग्लादेश और पश्चिम बंगाल से सटा हुआ है। यह इलाका राजनीतिक रूप से सभी राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। हाल के दिनों में किशनगंज की पहचान तेजी से उभरते चाय केंद्र के रूप में हुई है। चाय के उत्पादन के क्षेत्र में यह जिला राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर अपनी पहचान बना रहा है। आज देश में अधिकांश लोगों के दिन की शुरूआत गर्म-गर्म चाय के साथ होती है। कहा जाता है कि यहां चाय की खेती का आकर्षण मौजूद है तो संभावनाएं भी बहुत अधिक हैं। बताया जाता है कि वर्तमान में किशनगंज में लगभग 50,000 एकड़ भूमि पर चाय के बगान हैं। स्थानीय लोगों का दावा है कि यहां उत्पादित होने वाली चाय की गुणवत्ता ऐसी है कि इसकी मांग देश के सभी कोनों में है।

कृषि विभाग के अधिकारियों की मानें तो किशनगंज के पांच प्रखंड किशनगंज, पोठिया, ठाकुरगंज, बहादुरगंज और दिघलबैंक की मिट्टी और जलवायु चाय बागान के लिए बहुत उपयुक्त है। चाय बगान के जानकार बताते हैं कि यहां के चाय बगान नए हैं जिस कारण यहां के चाय की गुणवत्ता बहुत अच्छी मानी जाती है। स्थानीय लोगों की मानें तो किशनगंज में वर्ष 1993 में प्रायोगिक आधार पर पोठिया प्रखंड के एक गांव में मात्र पांच एकड़ जमीन पर चाय बागान की शुरूआत की गई थी। शुरूआत में एक प्रयोग के रूप में जो शुरू हुआ था, वह अब एक फलते-फूलते व्यापार में विकसित हो गया है। आज किशनगंज पर चाय के बड़े व्यपारियों से लेकर छोटे किसानों तक की नजर है।

1.50 मीट्रिक टन चाय की हरी पत्तियों का उत्पादन

बिहार टी प्लांटर्स एसोसिएशन के एक अधिकारी बताते हैं कि इस क्षेत्र में प्रति वर्ष लगभग 1.50 मीट्रिक टन चाय की हरी पत्तियों का उत्पादन होता है जबकि इससे 33,000 मीट्रिक टन चाय निकलती है। जिले में फिलहाल 12 चाय प्रसंस्करण इकाइयां हैं। जिला बागवानी अधिकारी रजनी सिन्हा दावे के साथ कहती हैं कि आज चाय बगान के कारण इस इलाके से मजदूरों का पलायन नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि इसकी खेती के लिए मिलने वाले कई सरकारी लाभों के कारण भी किसान अपने खेत में धान और गेहूं उगाने के बदले चाय बगान की ओर रुख कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में 5,000 से अधिक किसान चाय बागान से जुड़े हैं।

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