इंडोनेशिया के बाली द्वीप से आये कलाकारों ने कहा कि श्री राम की भूमि में आकर धन्य हुए, जिनकी कथा हम दुनिया भर में सुनाते हैं

बाली द्वीप में भारतीय सांस्कृतिक प्रभाव: रामकथा के परिधान जगह जगह तैयार होते हैं
यूरोपियन यूनियन, अमेरिका सहित अनेक देशों में देते हैं प्रस्तुति
पहली बार उस धरती पर आए, जहां से रामकथा सृजित हुई, छत्तीसगढ़ वही धरती जहां अरण्य कांड रचा गया

भारत से लगभग साढ़े आठ हजार किलोमीटर की दूरी पर बसे इंडोनेशिया के बाली द्वीप में भी किसी लड़की का नाम पद्मा हो सकता है या फिर श्रीयानी हो सकता है यह सोचना भी चकित कर देता है लेकिन बाली द्वीप में ऐसा हो सकता है। 2000 बरस पहले यहां भारतीय उपमहाद्वीप का सांस्कृतिक प्रभाव पड़ा और बाली ने भारत के सांस्कृतिक मूल्यों को अपना लिया। वाल्मीकि की रामायण कथा बाली द्वीप में आज भी उसी तरह से सुनी सुनाई जाती है, स्थानीय संस्कृति के अनुरूप इसका सुंदर मंचन किया जाता है। राष्ट्रीय रामायण महोत्सव के मौके पर बाली से आए दल की सदस्य ने बताया कि मेरा नाम पद्मा है। हमारे यहां बिल्कुल वैसे ही पूजा होती है जैसे भारत में होती है। हमारे यहां भी लोग मंदिर जाते हैं और हम सब भगवान राम के प्रति गहरी श्रद्धा रखते हैं। बाली से ही आई श्रीयानी ने बताया कि लक्ष्मी जो विष्णु जी की पत्नी हैं, उनकी विशेष पूजा बाली द्वीप में होती है, इसी वजह से बहुत सारी लड़कियों के नाम श्री से हैं जैसे श्रीयानी या पदमा।

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